*डाकोर नाम करण की कहानी*
*🌹भगवान के डाकू🌹*
श्री द्वारकापुरी के समीप ही डाकोर नाम का एक गाँव है, वहा श्री रामदास जी नाम के भक्त रहते थे।
*वे प्रति एकादशी को द्वारका जाकर श्री रणछोड़ जी के मंदिर में जागरण कीर्तन करते थे।*
जब इनका शरीर वृद्ध हो गया, तब भगवन ने आज्ञा दी, की अब एकादशी की रात का जागरण घर पर ही कर लिया करो। पर इन्होने ठाकुर जी की यह बात नहीं मानी।
भक्त का दृढ़ नियम देखकर भाव में भरकर भगवन बोले… अब तुम्हारे यहाँ आने का कष्ट मुझसे सहन नहीं होता है, इसलिए अब मै ही तुम्हारे घर चलूँगा।
अगली एकादशी को गाड़ी ले आना और उसे मंदिर के पीछे खिड़की की ओर खड़ा कर देना। मैं खिड़की खोल दूंगा, तुम मुझे गोद में भरकर उठा ले जाना और गाड़ी में पधराकर शीघ्र ही चल देना।
भक्त रामदास जी ने वैसा ही किया.. जागरण करने के लिए गाड़ी पर चढ़कर आये।
सभी लोगो ने समझा की भक्त जी अब वृद्ध हो गए है। अतः गाड़ी पर चढ़कर आये है।
*एकादशी की रात को जागरण हुआ, द्वादशी की आधी रात को वे खिड़की के मार्ग से मंदिर मे गए।*
श्री ठाकुरजी के श्रीविग्रह पर से सभी आभूषण उतारकर वही मंदिर मे रख दिए। इनको तो भगवान से सच्चा प्रेम था, आभूषणों से क्या प्रयोजन?
*श्री रणछोड जी को गाड़ी में पधराकर चल दिए।*
प्रातः काल जब पुजारियों ने देखा तो मंदिर सूना उजड़ा पड़ा है। लोग समझ गए की श्री रामदास जी गाड़ी लाये थे,वही ले गए।
पुजारियों ने पीछा किया। उन्हें आते देखकर श्री रामदास जी ने कहा की अब कौन उपाय करना चाहिए?
भगवान ने कहा.. मुझे बावली में पधरा दो। भक्त ने ऐसा ही किया और सुखपूर्वक गाड़ी हांक दी।
पुजारियों ने रामदास जी को पकड़ा और खूब मार लगायी। इनके शरीर मे बहुत-से-घाव हो गए।
भक्तजी को मार-पीटकर पुजारी लोगों ने गाड़ी में तथा गाड़ी के चारो ओर भगवान को ढूँढने लगे, पर वे कही नहीं मिले।
*तब सब पछताकर बोले की इस भक्त को हमने बेकार ही मारा।*
इसी बीच उनमे से एक बोल उठा.. मैंने इस रामदास को इस ओर से आते देखा, इस ओर यह गया था। चलो वहां देखे।
सभी लोगो ने जाकर बावली में देखा तो भगवान मिल गए। उसका जल खून से लाल हो गया था।
*भगवन ने कहा.. तुम लोगो ने जो मेरे भक्त को मारा है।*
उस चोट को मैंने अपने शरीर पर लिया है, इसी से मेरे शरीर से खून बह रहा है, अब मै तुम लोगों के साथ कदापि नहीं जाऊंगा।
यह कहकर श्री ठाकुरजी ने उन्हें दूसरी मूर्ति एक स्थान मे थी, सो बता दी और कहा की उसे ले जाकर मंदिर मे पधराओ..
*अपनी जीविका के लिए इस मूर्ति के बराबर सोना ले लो और वापस जाओ।*
*पुजारी लोभवश राजी हो गए और बोले.. तौल दीजिये।*
रामदास जी के घर पर आकर भगवान ने कहा.. रामदास, तराजू बांधकर तौल दो।
रामदासजी की पत्नी के कान मे एक सोने की बाली थी, उसी में उन्होंने भगवान को तौल दिया और पुजारियों को दे दिया।
*पुजारी अत्यंत लज्जित होकर अपने घर को चल दिए।*
*श्री रणछोडजी रामदास जी के घर में ही विराजे..*
इस प्रसंग मे भक्ति का प्रकट प्रताप कहा गया है। भक्त के शरीर पर पड़ी चोट प्रभु ने अपने उपर ले लिया, तब उनका ‘आयुध-क्षत’ नाम हुआ।
भगवान् ने भक्त् से अपनी एकरूपता दिखाने के लिए ही चोट सही, अन्यथा उन्हें भला कौन मार सकता है?
भगवान को ही डाकू की तरह लूट लाने से उस गाँव का नाम डाकौर हुआ,भक्त रामदास के वंशज स्वयं को भगवान के डाकू कहलाने में अपना गौरव मानते है।
आज भी श्री रणछोड़ भगवान को पट्टी बाँधी जाती है।धन्य है भक्त श्री रामदास जी..!!
*🙏🏼🙏🙏🏻जय श्री कृष्ण*🙏🏿🙏🏾🙏🏽
*पंडित ओम प्रकाश ओझा रतलामी सनातन सुरक्षा दल राष्ट्रीय सलाहकार*
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प्रधान संपादक नरेन्द्र सोनगरा
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