नहीं रहे उस्ताद जाकिर हुसैन तबला संगीत प्रेमियों के लिए छोड़ गए असाधारण विरासत।

admin Avatar
Spread the love

सोमवार 16 दिसंबर। मौसिकी की दुनिया में जिनके तबले की थाप एक अलहदा पहचान रखती है, वो उस्ताद जाकिर हुसैन नहीं रहे। 73 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। प्रसिद्ध तबला वादक के परिवार ने सोमवार को यह जानकारी दी। मशहूर हस्तियों ने सोशल मीडिया पर शोक व्यक्त किया। रविवार को भी निधन की अफवाह फैली थी, मगर परिजनों ने कहा था कि वे सलामत है

परिवार ने बयान में कहा कि जाकिर हुसैन का निधन फेफड़े से संबंधी ‘इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस’ से हुईं जटिलताओं की वजह से हुआ। वह 73 वर्ष के थे। हुसैन पिछले दो सप्ताह से अस्पताल में भर्ती थे। उनकी हालत बिगड़ने के बाद उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया था। परिवार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि वह दुनिया भर के अनगिनत संगीत प्रेमियों द्वारा संजोई गई एक असाधारण विरासत छोड़ गए हैं, जिसका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों तक बना रहेगा। हुसैन के निधन के बारे में जानकारी मिलते ही मशहूर हस्तियों ने सोशल मीडिया पर शोक व्यक्त किया।

दो बेटियां हैं श्री हुसैन की

प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा के पुत्र जाकिर हुसैन का जन्म नौ मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। उन्हें उनकी पीढ़ी के सबसे महान तबला वादकों में माना जाता है। 1978 में जाकिर हुसैन ने कथक नृत्यांगना एंटोनिया मिनीकोला से शादी की थी। उनकी दो बेटियां हैं, अनीसा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी।

पिता से मिली तबले की तालीम

तबले की तालीम उन्होंने पिता से ही ली थी। उस्ताद जाकिर हुसैन की शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महज 11 साल की उम्र में अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया। यानी तकरीबन 62 साल तक उनका और तबले का साथ नहीं छूटा। उन्होंने तीन ग्रैमी अवॉर्ड जीते। पद्म विभूषण से भी नवाजे गए। तबले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाने में उनका अहम योगदान रहा।

कई ख्यात नाम पुरस्कारों से नवाजा

जब तबले का जिक्र आता है तो सबसे बड़े नामों में उस्ताद जाकिर हुसैन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उन्होंने न सिर्फ अपने पिता उस्ताद अल्ला रक्खा खां की पंजाब घराने (पंजाब बाज) की विरासत को आगे बढ़ाया, बल्कि तबले के शास्त्रीय वादन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ले गए। उस्ताद को संगीत की दुनिया का सबसे बड़ा ग्रैमी अवॉर्ड 1992 में ‘द प्लेनेट ड्रम’ और 2009 में ‘ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट’ के लिए मिला। इसके बाद 2024 में उन्हें तीन अलग-अलग संगीत एलबमों के लिए एकसाथ तीन ग्रैमी मिले।

फिल्मों में भी किया अभिनय

1983 में जाकिर हुसैन ने फिल्म ‘हीट एंड डस्ट’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। इसके बाद 1988 में ‘द परफेक्ट मर्डर’, 1992 में ‘मिस बैटीज चिल्डर्स’ और 1998 में ‘साज’ फिल्म में भी उन्होंने अभिनय किया।

आम लोगों को जोड़ते थे तबले से

उस्ताद जाकिर हुसैन तबले को हमेशा आम लोगों से जोड़ने की कोशिश करते थे। यही वजह थी कि शास्त्रीय विधा में प्रस्तुतियों के दौरान बीच-बीच में वे अपने तबले से कभी डमरू, कभी शंख तो कभी बारिश की बूंदों जैसी अलग-अलग तरह की ध्वनियां निकालकर सुनाते थे। वे कहते थे कि शिवजी के डमरू से कैलाश पर्वत से जो शब्द निकले थे, गणेश जी ने वही शब्द लेकर उन्हें ताल की जुबान में बांधा। हम सब तालवादक, तालयोगी या तालसेवक उन्हीं शब्दों को अपने वाद्य पर बजाते हैं। …गणेश जी हमारे कुलदेव हैं।

 Avatar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Author Profile
Latest posts
Search