मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश में प्राकृतिक खाद के उपयोग को बढ़ाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जाए। बॉयो फर्टिलाइजर का उपयोग करने वाले किसानों की मदद के लिए व्यवस्था विकसित की जाए, जिससे कृषक ऑर्गेनिक उत्पाद लेने के लिए आगे आएं।
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने आज मंत्रालय में कृषि आदान की समीक्षा की, उन्होंने निर्देश दिए कि खरीफ के लिए सभी स्थानों पर पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध हो। यह सुनिश्चित किया जाए कि कहीं भी कालाबाजारी की संभावना निर्मित न हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि फसल उपार्जन में अच्छी गुणवत्ता की पैदावार लाने वाले किसानों को सम्मानित व पुरस्कृत किया जाए, जिससे किसान प्रोत्साहित होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में पर्याप्त उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए केन्द्र सरकार से निरंतर सम्पर्क किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कृषकों को संतुलित उर्वरक एनपीके के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाए। बैठक में मुख्य सचिव श्रीमती वीरा राणा, कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक बर्णवाल, प्रमुख सचिव सहकारिता श्रीमती दीपाली रस्तोगी तथा अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
अच्छी गुणवत्ता की पैदावार लाने वाले किसानों को सम्मानित व पुरस्कृत किया जाये
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने प्रदेश में यूरिया, डीएपी, एनपीके, एसएसपी और एमओपी उर्वरक की माँग, अब तक प्राप्त मात्रा तथा वितरण व्यवस्था की जानकारी प्राप्त की। बैठक में धान, कोदो, कुटकी, मक्का, ज्वार, बाजरा, उड़द, मूंगफली, सोयाबीन, कपास आदि के बीज की उपलब्धता की भी जानकारी दी गई। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि फसल उपार्जन में अच्छी गुणवत्ता की पैदावार लाने वाले किसानों को सम्मानित व पुरस्कृत करने की प्रक्रिया भी आरंभ की जाए।
भूमि की उर्वरकता बनाए रखने के लिए प्राकृतिक खाद के उपयोग को प्रोत्साहित करना जरूरी
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश में प्राकृतिक खाद के उपयोग को बढ़ाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जाए। बॉयो फर्टिलाइजर का उपयोग करने वाले किसानों की मदद के लिए व्यवस्था विकसित की जाए, जिससे कृषक ऑर्गेनिक उत्पाद लेने के लिए आगे आएं। पशुपालन-कम्पोस्टिंग को समन्वित करते हुए श्रीअन्न की उपज लेने के लिए भी किसानों को प्रेरित करने की आवश्यकता है। इससे फसल चक्र को संतुलित बनाए रखने में मदद मिलेगी और भूमि की उर्वरकता भी लंबे समय तक बनी रहेगी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि गौ-वंश की सुरक्षा और उनकी उचित देखभाल के लिए गौ-सेवा संगठनों, सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं के साथ ग्राम स्तर पर पहल की जाए।
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